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    ट्रम्प के खिलाफ केस लड़ेंगे भारतीय मूल के नील कत्याल:Yale Law School से पढ़े, सॉलिसिटर जनरल रहे; टैरिफ मामले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में वकील

    3 weeks ago

    भारतीय मूल के अमेरिकी अटॉर्नी नील कत्याल आज प्रेसिडेंट ट्रम्प की टैरिफ पॉलिसी के खिलाफ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ेंगे। यह मामला इस बात पर फोकस्ड है कि क्या राष्ट्रपति के पास 1977 के IEEPA यानी इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पॉवर्स एक्ट के तहत एकतरफा टैरिफ लगाने का अधिकार है, या ये पावर सिर्फ अमेरिकी कांग्रेस (संसद) के पास है। कत्याल का कहना है कि IEEPA कानून राष्ट्रपति को टैक्स या टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं देता है। ऐसा करना अमेरिकी कांग्रेस की पावर पर अतिक्रमण जैसा है। मां-बाप मूल रूप से भारतीय हैं नील कत्याल का जन्म अमेरिकी स्टेट इलिनॉय के शिकागो में हुआ। उनके माता-पिता मूल रूप से भारत से प्रवास कर अमेरिका आए थे। उनकी मां प्रतिभा कत्याल एक बाल रोग विशेषज्ञ हैं। वहीं, उनके पिता सुरेन्द्र कत्याल इंजीनियर थे, जिनका 2005 में निधन हो गया था। उनकी बहन सोनिया कत्याल यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के बर्कले स्कूल ऑफ लॉ में प्रोफेसर हैं। कॉलेज यूनियन के सदस्य रहे नील कत्याल की स्कूलिंग जेसुइट कैथोलिक हाई स्कूल में हुई। डार्टमाउथ कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे फाई बीटा कप्पा, सिग्मा न्यू फ्रैटर्निटी और डार्टमाउथ फॉरेंसिक यूनियन के सदस्य थे। नील ने येल लॉ स्कूल रहते हुए येल लॉ जर्नल में कई आर्टिकल्स लिखे। फिर आगे चलकर येल लॉ जर्नल के एडिटर बने। उन्होंने मशहूर लॉ एक्सपर्ट अखिल अमर और ब्रूस एकरमैन के सुपरविजन में पढ़ाई की। इन दोनों टीचर्स के साथ मिलकर उन्होंने 1995 और 1996 में कई लॉ रिसर्च और पॉलिटिकल आर्टिकल्स पब्लिश किए। साल 1995 में अपनी ज्यूरिस डॉक्टर (JD) डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने पहले US कोर्ट ऑफ अपील्स में क्लर्क के रूप में काम किया। फिर US सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस स्टीफन ब्रेयर के क्लर्क बने। स्पेशल काउंसल से रिलेडेट नियम तैयार किए 1990 के दशक के आखिर में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने नील कत्याल को जिम्मेदारी दी कि वे ज्यादा प्रो बोनो यानी फ्री ऑफ कॉस्ट लॉ सर्विसेस प्रोवाइड करने की जरूरत पर एक रिपोर्ट तैयार करें। साल 1999 में उन्होंने स्पेशल काउंसल से रिलेडेट नियम और दिशा-निर्देश तैयार किए। टैरिफ मामले में लोअर कोर्ट में केस जीते प्रेसिडेंट ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन ने अलग-अलग तरीके के टैरिफ लगाना शुरू किया। इसी दौरान इस्पात और एल्युमीनियम जैसे प्रोडक्ट्स का बिजनेस करने वाले बिजनेसमैन ने अतिरिक्त टैरिफ के खिलाफ निचली अदालत में चुनौती दी। याचिकाकर्ताओं ने नील कत्याल को अपना वकील बनाया। ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन ने इन टैरिफ को लगाने के लिए 1977 के एक कानून इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA), का हवाला दिया। एडमिनिस्ट्रेशन ने तर्क दिया कि ये टैरिफ राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने के लिए एक 'इकोनॉमिक इमरजेंसी' से निपटने के लिए जरूरी था। इस पर कत्याल का तर्क था कि टैरिफ लगाने या टैक्स लगाने की शक्ति विशेष रूप से अमेरिकी कांग्रेस (संसद) के पास है, न कि राष्ट्रपति के पास। IEEPA कानून राष्ट्रपति को टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं देता है, और ट्रंप ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है। इस पर 29 अगस्त, 2025 को निचली अदालत यानी कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द फेडरल सर्किट में 7-4 के बहुमत से कत्याल के पक्ष में फैसला सुनाया। ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन ने इस फैसले को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। नील कत्याल अब सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करेंगे। सुनवाई पर दुनिया की नजर अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में बुधवार, 5 अक्टूबर को इस केस की सुनवाई 80 मिनट तक चलेगी, जबकि और अन्य मामलों में 60 मिनट का ही टाइम मिलता है। अदालत को पूरी भरी रहने की उम्मीद है। पूरी दुनिया की नजर इस बात पर टिकी है कि क्या राष्ट्रपति की आर्थिक शक्तियां सीमित की जाएंगी या उन्हें और अधिक अधिकार मिलेंगे। ----------------- ये खबर भी पढ़ें... सचिन-कांबली के साथ क्रिकेट खेला, फर्स्ट क्लास में 30 शतक: बिना इंटरनेशनल खेले ‘मजूमदार’ ने इंडिया को बनाया वर्ल्ड चैंपियन, जानें कंप्लीट प्रोफाइल साल 1988 में हुए हैरिस शील्ड टूर्नामेंट में सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने 664 रनों की पार्टनरशिप खेली थी। इस पार्टनरशिप ने हर जगह सुर्खियां बटोरी। लेकिन सचिन और कांबली के बाद अगले बैटर जो पैडअप करके बैठे थे, वो थे अमोल मजूमदार, जिनका कभी नंबर नहीं आया। आगे भी यही हुआ, इंटरनेशनल क्रिकेट में उनका कभी नंबर ही नहीं आया। अब वे पहले कोच बने हैं, जिनकी अगुवाई में इंडियन विमेंस क्रिकेट टीम ने अपना पहला वर्ल्ड कप टाइटल जीता है। पढ़ें पूरी खबर...
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